साहित्य सागर कौन सी विधा है? - saahity saagar kaun see vidha hai?

चेतावनी: इस टेक्स्ट में गलतियाँ हो सकती हैं। सॉफ्टवेर के द्वारा ऑडियो को टेक्स्ट में बदला गया है। ऑडियो सुन्ना चाहिये।

नमस्कार ऑफिस नहीं साहित्य सहचर किस विधा की रचना है देखिए एक निबंध है जो हजारी प्रसाद द्विवेदी जी ने लिखा है साहित्य सहचर

Romanized Version

डॉ हजारी प्रसाद द्विवेदी द्वारा लिखित साहित्य सहचर किस विधा की रचना है?...


साहित्य सागर कौन सी विधा है? - saahity saagar kaun see vidha hai?

चेतावनी: इस टेक्स्ट में गलतियाँ हो सकती हैं। सॉफ्टवेर के द्वारा ऑडियो को टेक्स्ट में बदला गया है। ऑडियो सुन्ना चाहिये।

आपने पूछा डॉ अजय प्रसाद द्विवेदी द्वारा लिखित साहित्य सहचर किस विधा की रचना है देखे डॉ हजारी प्रसाद द्विवेदी द्वारा लिखित आलोचनात्मक विधा की रचना है

Romanized Version

साहित्य सागर कौन सी विधा है? - saahity saagar kaun see vidha hai?

1 जवाब

Related Searches:

sahitya sahchar kis vidha ki rachna hai ; डॉ हजारी प्रसाद द्विवेदी द्वारा लिखित साहित्य सहचर किस विधा की रचना है ; doctor hazari prasad dwivedi dwara likhit sahitya sahchar kis vidha ki rachna hai ;

Vokal App bridges the knowledge gap in India in Indian languages by getting the best minds to answer questions of the common man. The Vokal App is available in 11 Indian languages. Users ask questions on 100s of topics related to love, life, career, politics, religion, sports, personal care etc. We have 1000s of experts from different walks of life answering questions on the Vokal App. People can also ask questions directly to experts apart from posting a question to the entire answering community. If you are an expert or are great at something, we invite you to join this knowledge sharing revolution and help India grow. Download the Vokal App!

साहित्य का सहचर के लेखक/रचयिता

साहित्य का सहचर (Sahitya Ka Sahachar) के लेखक/रचयिता (Lekhak/Rachayitha) "आचार्य हजारी प्रसाद द्विवेदी" (Acharya Hazari Prasad Dwivedi) हैं।

Sahitya Ka Sahachar (Lekhak/Rachayitha)

नीचे दी गई तालिका में साहित्य का सहचर के लेखक/रचयिता को लेखक तथा रचना के रूप में अलग-अलग लिखा गया है। साहित्य का सहचर के लेखक/रचयिता की सूची निम्न है:-

रचना/रचनालेखक/रचयिता
साहित्य का सहचर आचार्य हजारी प्रसाद द्विवेदी
Sahitya Ka Sahachar Acharya Hazari Prasad Dwivedi

साहित्य का सहचर किस विधा की रचना है?

साहित्य का सहचर (Sahitya Ka Sahachar) की विधा का प्रकार "रचना" (Rachna) है।

आशा है कि आप "साहित्य का सहचर नामक रचना के लेखक/रचयिता कौन?" के उत्तर से संतुष्ट हैं। यदि आपको साहित्य का सहचर के लेखक/रचयिता के बारे में में कोई गलती मिली हो त उसे कमेन्ट के माध्यम से हमें अवगत अवश्य कराएं।

हिन्दी साहित्य के अब तक लिखे गए इतिहासों में आचार्य रामचन्द्र शुक्ल द्वारा लिखे गए हिन्दी साहित्य का इतिहास को सबसे प्रामाणिक तथा व्यवस्थित इतिहास माना जाता है। आचार्य शुक्ल जी ने इसे हिन्दी शब्दसागर की भूमिका के रूप में लिखा था जिसे बाद में स्वतंत्र पुस्तक के रूप में 1929 ई० में प्रकाशित आंतरित कराया गया। आचार्य शुक्ल ने गहन शोध और चिन्तन के बाद हिन्दी साहित्य के पूरे इतिहास पर विहंगम दृष्टि डाली है।

इतिहास-लेखन में आचार्य रामचन्द्र शुक्ल एक ऐसी क्रमिक पद्धति का अनुसरण करते हैं जो अपना मार्ग स्वयं प्रशस्त करती चलती है। विवेचन में तर्क का क्रमबद्ध विकास ऐसे है कि तर्क का एक-एक चरण एक-दूसरे से जुड़ा हुआ, एक-दूसरे में से निकलता दिखता है। लेखक को अपने तर्क पर इतना गहन विश्वास है कि आवेश की उसे अपेक्षा नहीं रह जाती।

आदिकाल से लेकर आधुनिक काल तक आचार्य शुक्ल का इतिहास इसी प्रकार तथ्याश्रित और तर्कसम्मत रूप में चलता है। अपनी आरम्भिक उपपत्ति में आचार्य शुक्ल ने बताया है कि साहित्य जनता की चित्तवृत्ति का संचित प्रतिबिम्बित होता है। इन्हीं चित्तवृत्तियों की परम्परा को परखते हुए साहित्य-परम्परा के साथ उनका सामंजस्य दिखाने में आचार्य शुक्ल का इतिहास और आलोचना-कर्म निहित है।

इस इतिहास की एक बड़ी विशेषता है कि आधुनिक काल के सन्दर्भ में पहुँचकर शुक्ल जी ने यूरोपीय साहित्य का एक विस्तृत, यद्यपि कि सांकेतिक ही, परिदृश्य खड़ा किया है। इससे उनके ऐतिहासिक विवेचन में स्रोत, सम्पर्क और प्रभावों की समझ स्पष्टतर होती है

hindi saahitya ka vibhaajan

हिंदी साहित्य का आरंभ अपभ्रंश में मिलता है। हिंदी में तीन प्रकार के साहित्य मिलते हैं – गद्य, पद्य और चम्पू। गद्य और पद्य दोनों के मिश्रण को चंपू कहते है। खड़ी बोली की पहली रचना कौन सी थी इस पर तो विवाद है लेकिन अधिकतर साहित्यकार हिन्दी की पहली प्रामाणिक गद्य रचना लाला श्रीनिवासदास द्वारा लिखे उपन्यास ‘परीक्षा गुरु’ को मानते हैं।

परिचय[संपादित करें]

शुक्ल जी ने इतिहास लेखन का यह कार्य कई चरणों में पूरा किया था। सबसे पहले उन्होंने काशी हिन्दू विश्वविद्यालय में छात्रों को पढ़ाने हेतु साहित्य के इतिहास पर संक्षिप्त नोट तैयार किया था। इस संक्षिप्त नोट के बारे में शुक्लजी ने खुद लिखा है, 'जिनमें (नोट में) परिस्थिति के अनुसार शिक्षित जनसमूह की बदलती हुई प्रवृत्तियों को लक्ष्य करके हिन्दी साहित्य के इतिहास के कालविभाग और रचना की भिन्न-भिन्न शाखाओं के निरुपण का एक कच्चा ढाँचा खड़ा किया गया था।'इसी समय के आसपास हिन्दी शब्दसागर का कार्य पूर्ण हुआ और यह निश्चय किया गया कि भूमिका के रूप में 'हिन्दी भाषा का विकास' और 'हिन्दी साहित्य का विकास' दिया जाएगा। आचार्य शुक्ल ने एक नियत समय के भीतर हिन्दी साहित्य का विकास लिखा। कहना न होगा कि इस कार्य में उन्होंने संक्षिप्त नोट से भरपूर मदद ली। इस तरह हिन्दी साहित्य के इतिहास का एक कच्चा ढाँचा तैयार तो हो गया परन्तु शुक्ल जी इससे पूरी तरह सन्तुष्ट न थे।

आचार्य शुक्ल द्वारा लिखी गई शब्दसागर की भूमिका से पूर्व साहित्येहितासनुमा कुछ पुस्तकें प्रकाशित हो चुकी थीं। गार्सा द तासी, शिवसिंह सेंगर, ग्रियर्सन आदि इस क्षेत्र में कुछ प्रयास कर चुके थे। नागरी प्रचारिणी सभा ने 1900 से 1913 ई. तक पुस्तकों की खोज का कार्य व्यापक पैमाने पर किया था। इस कार्य से अनेक ज्ञात-अज्ञात रचनाओं और रचनाकारों का पता चला था। इस सामग्री का उपयोग कर मिश्रबन्धुओं ने 'मिश्रबंधु-विनोद' तैयार किया था। रीतिकालीन कवियों के परिचयात्मक विवरण देने में शुक्ल जी ने मिश्र बन्धुविनोद का भरपूर उपयोग किया था। एक तरह से देखा जाये तो आचार्य शुक्ल के साहित्येतिहास लेखन से पूर्व दो प्रकार के साहित्यिक स्रोत मौजूद थे। एक तो खुद शुक्लजी द्वारा तैयार की गई नोट और भूमिका तथा दूसरे, अन्य विद्वानों द्वारा लिखी गई पुस्तकें। इन सबकी मदद से आचार्य शुक्ल ने 'हिन्दी साहित्य का इतिहास' लिखा जो 'शब्द सागर' की भूमिका के छह महीने बाद 1929 ई. में प्रकाशित हुआ। आगे चलकर हिंदी साहित्य का इतिहास पुस्तक का ऑनलाइन संपादन प्रमुख लेखक तथा भाषा शिक्षक डॉ. सुरेश कुमार मिश्रा, रंगारेड्डी आंध्र प्रदेश के नेतृत्व दल में संपन्न हुआ।[1]

'हिन्दी साहित्य का इतिहास' का संशोधित और प्रवर्धित संस्करण सन् 1940 में निकला। यह संस्करण प्रथम संस्करण से भिन्न था। इस संस्करण में अन्य चीजों के अलावा 1940 ई. तक के साहित्य का आलोचनात्मक विवरण भी दे दिया गया था। अब यह साहित्येतिहास की पुस्तक एक मुकम्मल पुस्तक का रूप ले चुकी थी।

संरचना[संपादित करें]

इस ग्रन्थ में आदिकाल यानी वीरगाथा काल का अपभ्रंश काव्य एवं देश की भाषा काव्य के विवरण के बाद भक्तिकाल की ज्ञानमार्गी, प्रेममार्गी, रामभक्ति शाखा, कृष्णभक्ति शाखा तथा इस काल की अन्य रचनाओं को अपने अध्ययन का केन्द्र बनाया है। इसके बाद के रीतिकाल के सभी लेखक-कवियों के साहित्य को इसमें समाहित किया है। अध्ययन को आगे बढ़ाते हुए आधुनिक काल के गद्य साहित्य, उसकी परम्परा तथा उत्थान के साथ काव्य को अपने विवेचन केन्द्र में रखा है।

इस पुस्तक में लगभग 1000 कवियों के जीवन चरित्र का विवेचन किया गया है। कवियों की संख्या की अपेक्षा उनके साहित्यिक मूल्यांकन को महत्त्व प्रदान किया गया है अर्थात् हिन्दी साहित्य के विकास में विशेष योगदान देने वाले कवियों को इसमें शामिल किया गया है। कम महत्त्व वाले कवियों को इसमें जगह नहीं मिली है। कवियों के काव्य निरुपण में आधुनिक समालोचनात्मक दृष्टिकोण को अपनाया गया है। कवियों एवं लेखकों की रचना शैली का वैज्ञानिक विश्लेषण किया गया है। इसमें प्रत्येक काल या शाखा की सामान्य प्रवृत्तियों का वर्णन कर लेने के बाद उससे संबद्ध प्रमुख कवियों का वर्णन किया गया है। उस युग में आने वाले अन्य कवियों का विवरण उसके बाद फुटकल भाग में दिया गया है।

अनुक्रम
  • प्रथम संस्करण का वक्तव्य
  • संशोधित और परिवर्धित संस्करण के सम्बन्ध में दो बातें
  • काल विभाग
  • आदिकाल (वीरगाथा, काल संवत् 1050-1375)
  • 1. सामान्य परिचय
  • 2. अपभ्रंश काव्य
  • 3. देशभाषा काव्य
  • 4. फुटकर रचनाएँ
  • पूर्व-मध्यकाल (भक्तिकाल, संवत् 1375-1700)
  • 1. सामान्य परिचय
  • 2. ज्ञानाश्रयी शाखा
  • 3. प्रेममार्गी (सूफी) शाखा
  • 4. रामभक्ति शाखा
  • 5. कृष्णभक्ति शाखा
  • 6. भक्तिकाल की फुटकर रचनाएँ
  • उत्तर मध्यकाल (रीतिकाल, संवत् 1700-1900)
  • 1. सामान्य परिचय
  • 2. रीति ग्रन्थकार कवि
  • 3. रीतिकाल के अन्य कवि
  • आधुनिक काल (गद्यकाल, संवत् 1900-1980)
  • 1. सामान्य परिचय : गद्य का विकास
  • 2. गद्य साहित्य का आविर्भाव
  • 3. आधुनिक गद्यसाहित्य परम्परा का प्रवर्तन प्रथम उत्थान (संवत् 1925-1950)
  • 4. गद्य साहित्य परम्परा का प्रवर्तन : प्रथम उत्थान
  • 5. गद्य साहित्य का प्रसार द्वितीय उत्थान (संवत् 1950-1975)
  • 6. गद्य साहित्य का प्रसार
  • 7. गद्य साहित्य की वर्तमान गति तृतीय उत्थान (संवत् 1975 से)
  • काव्यखण्ड (संवत् 1900-1925)
  • काव्यखण्ड (संवत् 1925-1950)
  • काव्यखण्ड (संवत् 1950-1975)
  • काव्यखण्ड (संवत् 1975)

समालोचना[संपादित करें]

आचार्य हजारी प्रसाद द्विवेदी, आचार्य शुक्ल के सबसे बङे आलोचक माने जाते हैं। डाॅ. गणपति चन्द्र गुप्त के शब्दों में "संभवतः द्विवेदीजी सबसे पहले व्यक्ति हैं, जिन्होंने आचार्य शुक्ल की अनेक धारणाओं और स्थापनाओं को चुनौती देते हुए उन्हें सबल प्रमाणों के आधार पर खण्डित किया है।" द्विवेदी जी ने शुक्ल के वीरगाथाकाल को ’आदिकाल’ नाम दिया।

सन्दर्भ[संपादित करें]

  1. "संग्रहीत प्रति". मूल से 21 जनवरी 2016 को पुरालेखित. अभिगमन तिथि 4 अक्तूबर 2019.

इन्हें भी देखें[संपादित करें]

  • हिंदी साहित्य
  • हिन्दी शब्दसागर
  • हिन्दी साहित्य का इतिहास - विभिन्न कालों की हिन्दी रचनाएं और उनका प्रभाव
  • हिन्दी साहित्य का सुबोध इतिहास (पुस्तक)

बाहरी कड़ियाँ[संपादित करें]

  • हिंदी साहित्य का इतिहास - संपूर्ण पुस्तक (हिन्दी समय)
  • हिंदी साहित्य का इतिहास - संपूर्ण पुस्तक (कविता कोश)
  • रामचन्द्र शुक्ल का साहित्येतिहास लेखन (बर्नाली नाथ )

साहित्य सहचर कौन सी विधा है?

साहित्य सहचर हजारी प्रसाद द्विवेदी द्वारा लिखित आलोचना विधा की एक रचना है। यह एक आलोचनात्मक निबंध है. इसका प्रकाशन 1965 में हुआ था। हजारी प्रसाद द्विवेदी हिंदी साहित्य जगत के एक प्रसिद्ध निबंधकार, आलोचक और उपन्यासकार रहे हैं।

साहित्य सहचर के लेखक कौन हैं?

Sahitya Sahchar - Hindi book by - Hazari Prasad Dwivedi - साहित्य-सहचर - हजारी प्रसाद द्विवेदी