संपत्ति के अधिकार की वर्तमान स्थिति क्या है आंसर - sampatti ke adhikaar kee vartamaan sthiti kya hai aansar

दिल्ली उच्च न्यायालय ने अपने हाल के ही एक फैसले में कहा था, कि वह संपत्ति जो किसी व्यक्ति ने खुद की कमाई से अर्जित की है, या खुद बनवायी है, तो उस संपत्ति के ऊपर उस व्यक्ति के बेटे या बेटी का क़ानूनी रूप से कोई अधिकार नहीं होता है। जब तक वह व्यक्ति (संपत्ति का मालिक) जीवित है, तब तक उस संपत्ति के विषय में विचार करने के अधिकार केवल उस व्यक्ति को ही होता है, वह अपनी मर्जी से संपत्ति को बेच भी सकता है, तथा किसी अन्य व्यक्ति को दान भी कर सकता है। केवल इतना ही नहीं वह किसी अन्य व्यक्ति को किराये पर उस संपत्ति का प्रयोग करने के लिए भी दे सकता है। उस व्यक्ति का बेटा या बेटी या कोई अन्य व्यक्ति उसे ऐसा करने से बाध्य नहीं कर सकता है। संपत्ति के मालिक के बेटा या बेटी केवल अपने पिता की दया पर ही उस संपत्ति का प्रयोग कर सकते हैं, पिता अपनी मर्जी से ही अपने बेटा या बेटी को घर से जाने के लिए भी कह सकते हैं। संपत्ति के मालिक के आलावा चाहे कोई भी हो मालिक के जीवित रहने तक उस संपत्ति पर अपने अधिकार का दावा नहीं कर सकते हैं।

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इसके आलावा किसी व्यक्ति की वह संपत्ति जो उसे अपने पूर्वजों से प्राप्त होती है, उस पैतृक संपत्ति पर उस व्यक्ति के बेटा और बेटी का भी पूर्ण अधिकार होता है, लेकिन वे लोग भी अपने पिता की मृत्यु के बाद ही अपने पिता की पैतृक संपत्ति में अपने अधिकार का दावा कर सकते हैं। पिता की मृत्यु होने से पहले उस संपत्ति पर केवल पिता का ही मालिकाना अधिकार होता है, वह अपनी मर्जी से अपनी पैतृक संपत्ति को किसी अन्य व्यक्ति को बेच भी सकता है, या किसी के नाम पर वसीयत भी कर सकता है। यदि वह पिता अपनी संपत्ति किसी के नाम नहीं करते हैं, और उनकी मृत्यु हो जाती है, तथा मृत्य होने से पहले उन्होंने किसी के नाम पर अपनी संपत्ति की वसीयत भी नहीं की थी, तो ऐसी स्तिथि में उस व्यक्ति के वैध उत्तराधिकारियों के बीच पैतृक संपत्ति का बंटवारा कर दिया जाता है। इसमें लड़का हो या लड़की दोनों को ही संपत्ति में हिस्सेदारी का समान अधिकार होता है।
 

बेटा या बेटी अपने पिता की संपत्ति कैसे प्राप्त कर सकते हैं

संपत्ति का मालिक यानी एक पिता अपने बेटा या बेटी को वह संपत्ति कई प्रकार से दे सकता है, वह दान करके अपनी संपत्ति को अपने बच्चों को दे सकता है, इसके अतिरिक्त एक पिता वसीयत करके भी अपनी संपत्ति अपने बेटा या बेटी को दे सकता है। सामान्यतः किसी भी पैतृक संपत्ति के बंटवारे की बात उस संपत्ति के मालिक की मृत्यु के बाद ही की जाती है, क्योंकि पैतृक संपत्ति के मालिक की मृत्यु के बाद ही उस संपत्ति के नए मालिक बनाने की जरूरत सामने आती है।

एक पैतृक सम्पति के नए मालिक बनाने के लिए कई तरीके हैं, जैसे कि संपत्ति के वर्तमान मालिक जिसकी मृत्यु हो चुकी है, उसकी वसीयत के आधार पर नए मालिक का चुनाव किया जा सकता है, अगर पिता के द्वारा कोई वसीयत नहीं की गयी है, तो उसके पुत्र, पुत्री या उसके उत्तराधिकारी के नाम पर वह पैतृक संपत्ति हस्तांतरित हो जाती है। पैतृक संपत्ति को अपने नाम पर हस्तांतरित करवाने के लिए एक व्यक्ति को उस संपत्ति के क्षेत्राधिकार वाले दीवानी न्यायालय में उत्तराधिकार प्रमाणपत्र के लिए एक आवेदन दर्ज कराना होगा। यदि एक व्यक्ति उस पैतृक संपत्ति को अपने नाम पर हस्तांतरित करने की सभी शर्तों को पूरा करता है, तो केवल ऐसी स्तिथि में वह उस संपत्ति को प्राप्त करने के लिए न्यायालय में आवेदन कर सकता है।

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न्यायालय द्वारा उन सभी लोगों से उस संपत्ति को हस्तांतरित करने के लिए किसी प्रकार की आपत्ति न होने के लिए पूछा जाता है, जो किसी भी प्रकार से उस संपत्ति से जुड़े हैं, या जिनका उस संपत्ति में बराबर का हिस्सा या उत्तराधिकार है। यदि उनमें से किसी भी व्यक्ति को कोई आपत्ति होती है, तो न्यायालय संपत्ति के हस्तांतरण के आवेदन को निरस्त भी कर सकता है। जब किसी व्यक्ति को कोई आपत्ति नहीं होती है, तो न्यायालय उस व्यक्ति को उत्तराधिकार प्रमाण पत्र जारी कर देता है, जिससे की वह संपत्ति उस नए मालिक के नाम पर हस्तांतरित हो जाती है। यदि संपत्ति के वर्तमान मालिक की मृत्यु हो चुकी है, तो ऐसी स्तिथि में आवेदन करने के लिए मृतक मालिक के मृत्यु प्रमाण पत्र का होना बहुत ही आवश्यक है, आवेदन करने के लिए आपको आवेदन के लिए दिए जाने वाले उचित शुल्क का भी भुगतान करना होगा।
 

यदि उत्तराधिकार लेने​ वाली बेटी विवाहित हो

विवाहित वाली बात केवल बेटी के मामले में ही सामने आती है, क्योंकि शादी होने के बाद एक बेटी ही अपने पिता का घर छोड़कर अपने पति के घर जाती है, और वहाँ पर भी उसे अपने पति की संपत्ति में हिस्सा प्राप्त होता है, चाहे वह पैतृक संपत्ति हो या स्वर्जित संपत्ति। किन्तु बेटों के मामले में ऐसा नहीं होता है, क्योंकि शादी होने के बाद बेटे अपने पिता के घर पर ही रहते हैं, और वह केवल अपने पिता की पैतृक संपत्ति में अपने अधिकार का दावा कर सकते हैं।

बर्ष 2005, से पहले हिन्दू उत्तराधिकार कानून में बेटियां सिर्फ हिन्दू अविभाजित परिवार (एच. यू. एफ.) की सदस्य मानी जाती थीं, वे हमवारिस या समान उत्तराधिकारी की श्रेणी में नहीं आती थीं। हमवारिस या समान उत्तराधिकारी से तात्पर्य उन लोगों से होता है, जिनका अपने से पहले की चार पीढ़ियों की अविभाजित संपत्तियों पर अधिकार होता है। हालांकि, बेटी का विवाह हो जाने के बाद उसे हिन्दू अविभाजित परिवार (एच. यू. एफ.) का हिस्सा नहीं माना जाता है।

बर्ष 2005, के हिन्दू उत्तराधिकार अधिनियम, में संशोधन होने के बाद बेटी को हमवारिस यानी समान उत्तराधिकारी माना जाने लगा है। अब बेटी के विवाह से पिता की संपत्ति पर उसके अधिकार में कोई परिवर्तन नहीं आता है। यानी, विवाह होने के बाद भी बेटी का पिता की संपत्ति पर अधिकार रहता है। लेकिन बेटी के इस अधिकार के लिए उसके पिता 9 सितम्बर 2005, को जीवित होने चाहिए, यदि पिता की मृत्यु इस दिन से पहले हो चुकी है, तो बेटी का शादी के बाद अपने पिता की पैतृक संपत्ति पर कोई अधिकार नहीं होगा, क्योंकि यह नया कानून इस दिन ही लागू किया गया था।

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पिता की संपत्ति में अपना अधिकार पाने में एक वकील कैसे मदद कर सकता है

केवल एक वकील ही वह यन्त्र होता है, जिसके माध्यम से पैतृक संपत्ति को अपने नाम में कराने जैसा कोई भी छोटा या बड़ा क़ानूनी कार्य बड़ी सरलता से किया जा सकता है, क्योंकि पैतृक संपत्ति में एक से अधिक हिस्सेदार भी हो सकते हैं, और उनमे संपत्ति के बंटवारे को लेकर कई तरह से विवाद भी हो सकते हैं। ऐसे में एक वकील ही उचित क़ानूनी तरीके से सभी उत्तराधिकारियों में उनके हिस्से के हिसाब से संपत्ति का बंटवारा करवा सकता है। तथा एक वकील ही कम समय में और कम खर्चे में पैतृक संपत्ति का पंजीकरण भी उचित रूप से करवा सकता है। लेकिन इसके लिए यह ध्यान रखना बहुत ही आवश्यक होता है, कि जिस वकील को हम अपनी पैतृक संपत्ति बंटवारा कराने के लिए नियुक्त करने की

भारत में संपत्ति के अधिकार की स्थिति क्या है?

सही उत्तर यह विधिक अधिकार है, जो किसी भी व्यक्ति को प्राप्‍त है, है। संपत्ति के अधिकार को 44वें संशोधन अधिनियम, 1978 द्वारा मौलिक अधिकारों की सूची से हटा दिया गया था। इसे संविधान के भाग XII में अनुच्छेद 300-ए के तहत कानूनी अधिकार बनाया गया है। यह नागरिकों को दिया जाने वाला कोई विशेष कानूनी अधिकार नहीं है।

संपत्ति का अधिकार कब खत्म किया गया?

संपत्ति के अधिकार को चवालिसवें संवैधानिक संशोधन अधिनियम, 1978 द्वारा मौलिक अधिकारों की सूची से हटा दिया गया था।

संपत्ति के अधिकार से आप क्या समझते हैं?

"संपत्ति" शब्द के कई अर्थ हो सकते हैं यथा स्वामित्व या स्वत्व, अर्थात् स्वामी को प्राप्त संपूर्ण अधिकार। कभी कभी इसका अर्थ रोमन "रेस" होता है जिसे अंतर्गत स्वामित्व के अधिकार का प्रयोग होता है जिसके अंतर्गत स्वामित्व के अधिकार का प्रयोग होता है अर्थात् स्वयं वह वस्तु जो उक्त अधिकार का विषय या पात्र है।

क्या संपत्ति का अधिकार मौलिक अधिकार है?

बाद में, 1978 के 44वें संशोधन में मौलिक अधिकारों की सूची से संपत्ति का अधिकार हटा दिया गया। इसलिए, संपत्ति का अधिकार अब मौलिक अधिकार नहीं है, हालांकि यह अभी भी एक संवैधानिक अधिकार है।