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शनिवार के दिन लोग पीपल के पेड़ की पूजा करते हैं, उसके समक्ष सरसों के तेल का दीपक जलाते हैं. मान्यता है कि इससे शनि की साढ़ेसाती, ढैया, महादशा व अन्य तमाम प्रभावों से मुक्ति मिलती है.क्यों पीपल के नीचे दीपक जलाने से मिलती है शनि पीड़ा से मुक्ति पीपल के पेड़ को हिंदू शास्त्रों में काफी पूज्यनीय माना जाता है. मान्यता है कि इस पेड़ में भगवान विष्णु का वास होता है. गीता में भगवान श्रीकृष्ण ने इसे खुद का स्वरूप बताया है. हिंदू शास्त्रों के अनुसार शनिवार के दिन पीपल के नीचे सरसों के तेल का दीपक जलाने से शनि की महादशा, साढ़े साती, ढैया व अन्य प्रभावों से मुक्ति मिलती है. इसलिए लोग शनि के कष्टों से बचने के लिए शनिवार के दिन पीपल की पूजा करते हैं. यहां जानिए इसके पीछे की पौराणिक कथा. पौराणिक कथा के अनुसार, एक समय स्वर्ग पर असुरों का शासन हो गया. कैटभ नाम का राक्षस पीपल वृक्ष का रूप धारण करके यज्ञ को नष्ट करने लगा. जब भी कोई ब्राह्मण समिधा के लिए पीपल के पेड़ की टहनियां तोड़ने के लिए पेड़ के पास जाता तो राक्षस उसे खा जाता. ऋषिगण समझ ही नहीं पा रहे थे कि ब्राह्मण कुमार कैसे गायब होते चले जा रहे हैं. तब ऋषिगण सूर्यपुत्र शनि देव के पास सहायता मांगने गए. शनिदेव ब्राह्मण बनकर पीपल के पेड़ के पास गए और कैटभ ने शनि महाराज को पकड़ लिया. इसके बाद शनि और कैटभ में युद्ध हुआ. शनि महाराज ने कैटभ का वध कर दिया. इसके बाद ऋषियों ने शनि की पूजा व अर्चना की. इसके बाद शनि ने ऋषियों को कहा कि अब से जो भी शनिवार के दिन पीपल के पेड़ की पूजा करेगा. उसके समक्ष सरसों के तेल का दीपक जलाएगा,उसे शनि की पीड़ा से मुक्ति मिलेगी. ये है दूसरी कथाइसके अलावा एक अन्य कथा के अनुसार भगवान शिव के अवतार माने जाने वाले ऋषि पिप्लाद के माता-पिता की उनके बचपन में ही मृत्यु हो गई थी. बड़े होने पर जब पिप्लाद को पता चला कि माता-पिता की मृत्यु शनि की दशा की वजह से हुई थी तो उन्होंने शनिदेव को सबक सिखाने के लिए घोर तपस्या की. तपस्या से ब्रह्मा जी को प्रसन्न करके उनसे ब्रह्मदंड मांगा और शनि देव की खोज में निकल पड़े. इस दौरान उन्होंने शनि देव को पीपल के वृक्ष पर बैठा देखा तो उनके ऊपर ब्रह्मदंड से प्रहार किया. इससे शनि के दोनों पैर टूट गए. दुखी होकर शनिदेव ने भगवान शिव को पुकारा, तो भगवान शिव ने प्रकट होकर पिप्लाद का क्रोध शांत किया और शनिदेव के प्राणों की रक्षा की. तब से शनिदेव पिप्लाद से डरने लगे. माना जाता है कि पिप्लाद का जन्म पीपल के वृक्ष के नीचे हुआ था और पीपल के पत्तों को खाकर ही उन्होंने तप किया था. इसलिए शनिवार के दिन जो पीपल के पेड़ की पूजा करता है, उस पर ऋषि पिप्लाद की कृपा रहती है और शनिदेव उसे प्रताड़ित नहीं करते. * ग्रहों की शांति और परीक्षा में उत्तीर्ण होना है तो करें आवश्यक उपाय... ज्योतिष के अनुसार किसी न किसी राशि पर ग्रहों का प्रभाव चलता ही रहता है, जिसमें शनि को अनिष्टकारी ग्रह माना गया है। इस ग्रह से प्रभावित राशि वाले लोगों का परेशानियों से चोली-दामन का साथ रहता है। अन्य ग्रह भी कभी-कभी अपना प्रभाव राशियों पर दिखाते हैं, लेकिन ग्रहों की शांति व उनमें अनुकूलता बनाए रखने के लिए प्रभावित लोगों को मंदिर या पीपल के वृक्ष के नीचे घी या तेल का दीपक अवश्य जलाना चाहिए। खासकर युवा जब परीक्षा का समय आता है तो उन्हें याद आते है भगवान। कहा जाता है कि प्रार्थना में बड़ी शक्ति होती है, इससे व्यक्ति अपने उन कार्यों को भी सिद्ध कर लेता है, जो उनको असंभव दिखाई देते हैं। कुछ यही मानना है आज के युवाओं का। जो पढ़ाई-लिखाई में कई व्यस्तताओं के बावजूद भी रोज शाम को मंदिरों में दीया-बत्ती करने के लिए जाते हैं। वे भगवान से मन्नते भी मांगते हैं कि हमें परीक्षा में पास करा दो, तो 5 सोमवार आपके दर पर दीपक जलाएंगे। माना जाता है कि अपने ग्रहों की शांति के लिए पीपल, केले एवं बरगद के वृक्ष तले दीप जलाने से जीवन में आने वाली समस्त बाधाओं से मुक्ति मिलती है। अपने जीवन को शांत व सुखमय करने के लिए ईश्वर पर श्रद्धा रखकर यह दीप जलाया जाता है। इससे परीक्षा के दिनों में एक हौंसला बना रहता है। दीपक जलाने की यह परंपरा कई वर्षों से चली आ रही है। चूंकि हमारे समाज में स्त्री द्वारा पीपल के पेड़ पर या भगवान के मंदिर में दीपक जलाना शुभ माना जाता है, इसलिए पढ़ाई-लिखाई में चाहे जितनी भी व्यस्तता क्यों न हो, युवा मंदिर में दीपक जलाना नहीं भूलते। वे मानते हैं कि जीवन में सफलता के लिए भगवान का साथ होना जरूरी है। उस परमात्मा का साथ पाने के लिए व उसे मनाने के लिए दीप जलाना एक माध्यम होता है। हम दीप जलाकर अपनी इच्छाओं की पूर्ति के लिए अर्जी लगाकर ईश्वर को प्रसन्न कर सकते हैं। ग्रहों से होने वाले अनिष्ट के निवारण के लिए घी या तेल का दीपक जलाना शुभ माना जाता है। कोई इसे हिंदू समाज की परंपरा बताता है, तो कोई प्रतिकूल ग्रहों की शांति के लिए आवश्यक उपाय। मंदिरों में अक्सर सूर्यास्त के बाद गोरज मुहूर्त में पीपल के वृक्ष व भगवान की मूर्ति के आगे युवक-युवतियों को प्रार्थना करते, दीप जलाते हुए देखा जा सकता हैं। इस समय न जाएं पीपल के पास, साथ चली आएंगी परेशानियांसनातन धर्म में पीपल वृक्ष को देवतुल्य माना गया है। तभी तो इसके पूजन का विधान शास्त्रों में भी बताया गया है। सनातन धर्म में पीपल वृक्ष को देवतुल्य माना गया है। तभी तो इसके पूजन का विधान शास्त्रों में भी बताया गया है। पीपल को कलियुग का कल्पवृक्ष माना जाता है। पीपल एकमात्र पवित्र देववृक्ष है जिसमें सभी देवताओं के साथ ही पितरों का भी वास रहता है। श्रीमद्भगवदगीता में भगवान श्री कृष्ण ने कहा है कि
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शनिवार के दिन पीपल में दीपक जलाने से क्या होता है?शनिदेव को न्याय का देव कहा जाता है। दंडाधिकारी के रूप में लोकप्रिय शनिदेव को प्रसन्न करने के लिए कई तरह की पूजा अर्चना की जाती है। इसमें से एक है शनिवार के दिन पीपल के पेड़ के नीचे सरसों के तेल का दीपक जलाना। शनिवार के दिन की गई पीपल की पूजा से शनिदेव प्रसन्न होकर जातक को राहत देते हैं।
पीपल के नीचे दीपक कब जलाना चाहिए?पीपल के नीचे दीपक रखने का ऐसा नियम
मान्यता है कि प्रत्येक अमावस्या को रात्रि में पीपल के नीचे शुद्ध घी का दीपक जलाने से पितर प्रसन्न होते हैं। वहीं अगर नियमित रूप से 41 दिनों तक पीपल के नीचे सरसों के तेल का दीपक जलाया जाए तो सभी मनोकामनाओं की पूर्ति होती है।
शनिवार को पीपल में दिया कब जलाना चाहिए?हर शनिवार को शाम के वक्त स्वच्छ वस्त्र धारण करें और फिर दिन छिपने के बाद पीपल के वृक्ष की जड़ के पास जल अर्पित करें और सरसों के तेल का दीपक जलाएं। ऐसा करने से आपके ऊपर से शनि की दशा का प्रभाव कम होता है और अनेक प्रकार के कष्टों का निवारण होता है।
शनिवार को पीपल की पूजा कितने बजे करनी चाहिए?इसलिए सूर्योदय से पहले न तो पीपल की पूजा करनी चाहिए और न ही इस वृक्ष के पास जाना चाहिए, ऐसा करने से घर में दरिद्रता चली आती है। हमेशा सूर्योदय के बाद ही पीपल की पूजा करें।
शनिवार को पीपल में जल कितने बजे चढ़ाना चाहिए?इस विधि से करें पूजा
शनिवार के दिन सुबह पेड़ में जल अर्पित करने से मन को शांति मिलती है. इस दिन पीपल को जल अर्पित करने से कुंडली के कमजोर ग्रह मजबूत होते हैं. जल चढ़ाने के साथ पीपल के पेड़ की परिक्रमा करें. ऐसा करना बहुत ही शुभ माना जाता है.
शनिदेव पीपल के पेड़ से क्यों डरते हैं?शनिदेव दुखी होकर भगवान शिव को पुकारने लगे। भगवान शिव ने आकर पिप्पलाद का क्रोध शांत किया और शनि की रक्षा की। तभी से शनि पिप्पलाद से भय खाने लगे। पिप्लाद का जन्म पीपल के वृक्ष के नीचे हुआ था और पीपल के पत्तों को खाकर इन्होंने तप किया था इसलिए माना जाता है कि पीपल के पेड़ की पूजा करने से शनि का अशुभ प्रभाव दूर होता है।
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